गांधी जी की ताबीज
गांधी जी कहते हैं, मैं तुम्हें एक ताबीज देता हूँ। जब भी दुविधा में हो या जब अपना स्वार्थ तुम पर हावी हो जाए, तो इसका प्रयोग करो। उस सबसे गरीब और दुर्बल व्यक्ति का चेहरा याद करो जिसे तुमने कभी देखा हो, और अपने आप से पूछो- जो कदम मैं उठाने जा रहा हूँ, वह क्या उस गरीब के कोई काम आएगा? क्या उसे इस कदम से कोई लाभ होगा? क्या इससे उसे अपने जीवन और अपनी नियति पर कोई काबू फिर मिलेगा? दूसरे शब्दों में, क्या यह कदम लाखों भूखों और आध्यात्मिक दरिद्रों को स्वराज देगा?
तब तुम पाओगे कि तुम्हारी सारी शंकाएं और स्वार्थ पिघल कर खत्म हो गए हैं.
Source: Mahatma Gandhi [Last Phase, Vol. II (1958), P. 65].
5 टिप्पणियां:
अफ़सोस है कि इस ताबीज को धारण करने वाले बहुत कम हैं !
उच्च आध्यात्मिक स्तर की आवश्यकता होती है इसके धारण
की पात्रता में , जो सहज सुलभ नहीं है !
पुनः पढ़वाने का शुक्रिया !
कुछ बहुत बड़े सरोकारों वाली बातें भी घिस-घिस सी जातीं हैं पर उनका महत्त्व कम नहीं हो जाता..! जैसे ये गाँधी जी का जंतर..एक साथ अनावश्यक गर्व धुल जाता है और अपना कर्तव्य स्मरण हो उठता है..गाँधी जी के इस जंतर से....!
जंतर तो गाँधी जी दे गये लेकिन इस पर आज के नेताओं का मंतर हाबी हो गया है.
आभार इस ताबीज की याद दिलाने के लिए.
नेताओं को सर्वाधिक गरीब अपना ही चेहरा दिखे तो ।
bhai achchha laga. ye tabeej commonwelth wale bhi rakh lete to shayad aaloo sasta hota. aabhar
एक टिप्पणी भेजें